इतिहास के पन्नों में मोहर्रम की पांच तारीख
फतेहपुर, शमशाद खान । कर्बला के शहीदों में यू तो हजरत इमाम हुसैन (अ.) के सभी साथियों ने अत्यंन्त वीरता का परिचय दिया है। किन्तु उनमें जनाबे जुहैरें कैन व सईद बिन अब्दुल्ला हनफी का बलिदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सुबह नमाजे फज्र के बाद सेनापति यजीद, अमर बिन साद ने अपने लश्कर को गवाह करके कहा कि ‘‘गवाह रहना हुसैन की ओर। मै पहला तीर फेंक रहा हूं‘‘ यह कहकर उसने खियामें हुसैनी की तरफ तीर फेककर जंग की शुरूआत कर दी और उसके बाद यजीद की फौज की ओर से हजारों तीर खेमए हुसैन की ओर चले जिससे इमाम के बहुत से साथी, बच्चे और औरते घायल हो गए और जंग की शुरू हो गई। दोपहर ढले युद्ध के मध्य जोहर की नमाज का समय हुआ। इमाम के साथ अबू तमामा सायदी ने इमाम से कहा कि हम कुछ लोग बचे हैं और हमारा भी मरना निश्चित है। हम चाहते है कि आपके पीछे आखरी नमाज जमाअत से पढ़ लें। इमाम हुसैन ने उन्हे दुआ दी और
कहा कि फौजे यजीदी से नमाज के लिये मौका मांग लो जब उनसे नमाज के लिये जंग बंद करने की बात कही गयी तो यजीद की फौज के एक सेनापति हसीन बिन नमीर ने कहा कि नमाज तुम्हारी कुबूल नहीं है हम तुम्हे कोई मौका नहीं देगें। यह सुनकर इमाम के साथी जनाब जुहेर बिन कैन और सईद बिन अब्दुल्ला ने इमाम से कहा कि आज जमाअत से नमाज पढायें हम आपकी व जमाअत की रक्षा करेगें और वह इमाम तथा जमाअत के आगे खडे़ हो गये फौजे यजीदी ने तीर बरसाना प्रारम्भ कर दिया तो यजीद की ओर से जो तीर आता था यह दोनों वीर उसे अपने सीने पर रोक लेते थे। इस प्रकार नमाज समाप्त होने के पहले-पहले सईद फिर हुहेर जमीन पर गिरे और दम तोड दिया। नमाज के बाद इमाम के अन्य साथियों ने जिनमें अब्दुर्रहमान बिन अब्दुल्ला उमरू बिन फरत, उमरू बिन खालिद, हनजला बिन असअद, स्वेद बिन उमरू, यहिया बिन सलीम, आबिस बिन शुएब आदि लोगों ने इमाम की सहायता में अपनी जानों की बलि दी तथा धर्म व सत्यता के मार्ग में शहीद हुए। जिनमें अधिकतर धर्मगुरू, सहाबिए रसूल, कारी कुरान थे। इमाम हुसैन के जांबाज साथियों ने अपने जीवन में इमाम या उनके परिवार के किसी सदस्य को कोई नुकसान नही पहुंचने दिया किन्तु जब वह साथी लड़कर शहीद हो गये तो इमाम के परिवार के सदस्यों ने इमाम हुसैन की सहायता में युद्ध करना प्रारम्भ किया। जिसमें सर्व प्रथम हजरत मुस्लिम के पुत्र अब्दुल्ला युद्ध के लिये निकले और तीन हमले फौजे यजीद पर करके तीस सिपाहियों को कत्ल करके शहीद हुए तत्पश्चात जाफर बिन अकील इमाम के चचेरे भाई व हजरत मुस्लिम के सगे भाई मैदान में आये और युद्ध किया। उन्होने लगभग पन्द्रह सिपाहियों को तलवार से कत्ल किया और शहीद हुये। उसके बाद जाफर के भाई अब्दुर्रहमान बिन अकील ने युद्ध किया और सत्रह आदमियों को मार कर शहीद हुये तत्पश्चात दो भाई और अब्दुल्ला बिन अकील व अली बिन अकील ने युद्ध किया और बहुत से आदमियों को मारकर शहीद हुये इन योद्धाओं की शहादत के बाद जनाबे जैनब के दो पुत्र मोहम्मद व औन बिन अब्दुल्ला बिन जाफर जो इमाम के सगे भांजे थे और जिनकी आयु नौ व दस वर्ष की थी अपनी छोटी-छोटी तलवारे लेकर यजीद की फौज में घुस गये और अत्यन्त वीरता के साथ युद्ध करते हुये यजीद के महा सेनानायक इब्ने साद के खेमे के पास पहुंच गये और दुश्मनों मे घिर कर अपने प्राणों की बलि दी। इन दोनो बच्चो ने मिलकर लगभग 48 दुश्मन के सिपाहियों को कत्ल किया। इस युद्ध में मुख्य बात यह थी कि इमाम हुसैन के साथ व परिवार के सदस्य जान पर खेलकर वीरता से जान देने की नियत से युद्ध करते थें जबकि यजीद की फौज के सिपाही अधिक संख्या में थे और अपनी जान बचाने व दूर से आक्रमण की नीति से युद्ध करते थे। इस कारण इमाम हुसैन का एक सिपाही भी दुश्मन के सैकडों सिपाहियों पर भारी पडता था। इसके अतिरिक्त अरब में जनाबे हाशिम का कबीला अपनी वीरता के लिये परिचित भी था। इस कारण यजीद की एक लाख की फौज भी बहत्तर आदमियों से दिन भर लडती रही। पांच मोहर्रम की मजलिसें में वक्ता इन्ही के चरित्र व वीरता का वर्णन करते हैं।
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