भगवान शिव के पावन सावन मास में नागपंचमी पर्व मनाया जाता है। श्रावण शुक्ल पंचमी को ‘नाग पंचमी’ कहते हैं पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं। इस वर्ष पंचमी 2 अगस्त को है। पंचमी तिथि 2 अगस्त को प्रात : 5 :13 से प्रारंभ होकर 3 अगस्त को प्रात : 5 :41 तक रहेगी इस दिन मंगला गौरी व्रत भी रखा जाएगा। इस प्रकार नाग पंचमी के दिन भगवान शिव के साथ माता पार्वती की कृपा पाने का भी शुभ संयोग बन रहा है।। इस साल नागपंचमी के दिन शिव व सिद्धि योग का शुभ संयोग बन रहा है। शिव योग 2 अगस्त को शाम 06 बजकर 38 मिनट तक है इसके बाद सिद्धि योग शुरू होगा।हिन्दू धर्म में नागों को पूजनीय माना गया है। भगवान शिव ने अपने गले में नाग धारण कर रखा है और भगवान विष्णु भी शेषनाग की शैया पर विश्राम करते है। नागपंचमी का त्यौहार पूरे देश में मनाया जाता
है परन्तु उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिमबंगाल में नागपंचमी का विशेष महत्व है। नागपंचमी पर सर्पाे की अधिष्ठात्री देवी मनसा देवी की भी पूजा की जाती है। नाग पूजा से पितृदोष की शान्ति और निसंतान को संतान प्राप्ति होती है। नाग पंचमी के दिन किसी भी तरह की भूमि की खुदाई करना मना होता है। इस दिन घर के दीवारों पर नाग की आकृति बनाकर उसकी पूजा की जाती है। नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा करने से सुख- शांति और समृद्धि आती है। इसके साथ ही 12 नागों का स्मरण करने के साथ इस मंत्र का जाप करना चाहिए। इससे हर तरह के भय से मुक्ति मिल जाती है। नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा करने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही 12 नागों का स्मरण करने के साथ मंत्र का जाप करना चाहिए। इससे हर तरह के भय से मुक्ति मिल जाती है। मंत्र- ऊं कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा' मंत्र का जाप लाभदायक माना जाता है। ज्योतिषानुसार- राहु को सर्प का सिर और केतु को सर्प की पूँछ माना गया है। नागपंचमी पर काल सर्प की शान्ति और कुंडली में राहु और केतु ग्रहों के कुप्रभाव को समाप्त करनें के लिये ये दिन बहुत उत्तम है। राहु से पीड़ित व्यक्ति को ऊँ रां राहवें नमः और केतु के लिये ऊँ कें केतवें नमः का जाप करने से और शिवलिंग पर भंाग-धतूरा अर्पित करने से व आठमुखी व नौ मुखी रूद्राक्ष पहने से राहु केतु के बुरे प्रभाव समाप्त होते है।
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