देवेश प्रताप सिंह राठौर..........
(वरिष्ठ पत्रकार)
............................................... चिटफंड कंपनी के नाम से बहुत सारी कंपनियां खुली थी और लोगों का पैसा बहुत सारी कंपनियां बंद हो गए हैं और पैसा सेबी और कंपनी के बीच में फस कर आम आदमी का गाढ़ी कमाई का पैसा प्राप्त नहीं हो सका, सेबी के पास पहुंच जाता है , तथा सेवी जमा करता को भुगतान नहीं कर पाती ,क्योंकि सेवी के पास सुरक्षित जनता की धनराशि समझी जाती है , परंतु वहां से भी पैसा मिलना आसान नहीं है, बहुत सी अनियमितताएं हैं बहुत से सिस्टम में दिक्कतें हैं जिस कारण चित फंड का पैसा डूबा या सेवी के पास फसा आम आदमी का तो पैसा कैसे मिलेगा जो कंपनियां बंद हो चुकी है बरसों हो गए हैं , देश की जनता का हजारों करोड़ों रुपया पड़ा हुआ है जो आज तक सेवी भुगतान नहीं कर सकी उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया ना ही भुगतान हो सका, वह कंपनियां बंद हुए बरसों हो चुके हैं।
मैं आपको एक छोटी सी घटना जो हकीकत है कोई कहानी नहीं है बताना चाहता हूं जो हकीकत है, मैं हाई स्कूल में पढ़ता था जनपद उन्नाव में पवन एक्सप्रेस ट्रेन चलती थी उस समय छोटी लाइन हुआ करती थी फर्रुखाबाद जाने के लिए जो लखनऊ से फर्रुखाबाद कासगंज जाती थी हम उससे फर्रुखाबाद जाते थे ,हमारा गृह जनपद फर्रुखाबाद है अब कन्नौज हो गया है,हम पवन एक्सप्रेस ट्रेन पर बैठे ट्रेन उन्नाव से चली कानपुर फिर कानपुर से अनवरगंज पहुंची अनवरगंज में चोर ने एक औरत का कान का बाला खींच कर भागा और वो चिल्लाई तो लोगों ने उसे पकड़ लिया जीआरपी की पुलिस आई चोर को पकड़ कर ले गई ट्रेन कुछ देर के लिए रुकी रही मैं उस समय छोटा था लेकिन मेरी जिज्ञासा हुई कि मैं जाकर जीआरपी थाना अनवरगंज स्टेशन में ही था मैं भी गया में स्टेशन के पास जो कमरा था जीआरपी का वहां मैं गया और चोर बैठा हुआ था बाला भी कान का मिल गया लेकिन पुलिस ने वाला को नहीं दिया कान के बाले को क्योंकि उस वाले की लिखा पढ़ी होनी शुरू हो गई औरत कह रही हम कासगंज में रहते हैं हम कैसे आएंगे हमारा वाला चोर से मिल गया है हमको लौटा दो जीआरपी पुलिस ने कि कान का बाला उस
महिला का नहीं लौटाया तथा जीआरपी थाना ने उसकी कानूनी कार्रवाई आरंभ कर दी, बहुत सी जनता खड़ी थी लोगों ने कहा महिला का बाला लौटा दो जीआरपी के लोगों से परंतु उन्होंने एक न सुनी और उस महिला का कान के बाला का जो सोने का था उसका उसका पोस्टमार्टम कर दिया कपड़े में बांद्रा आरंभ हो चुका था और उसके बाद ट्रेन चलने की आवाज आई सब लोग भागे अपनी अपने डिब्बे में बैठ गए फिर क्या हुआ बाला का उस महिला को मिला या नहीं भगवान जाने क्या हुआ बड़ा लंबा समय हो गया यह कहानी नहीं हकीकत है जो मैंने अपनी आंखों से देखी मुझे बड़ी विडंबना हुई अपने देश के कानून पर चोर ले गया तो भी गया पुलिस ने पकड़ा तो भी गया क्योंकि इतनी कानूनी कार्यवाही होगी इस तरह की कार्यवाही को मैंने देखकर मैं खुद ही विचलित हुआ वाह मेरा भारत देश न्यायिक प्रक्रिया कितनी शिथिल है, मैं उस समय हाई स्कूल का छात्र था छोटा था लेकिन इतना ना समझ नहीं था मैंने सोचा इसका बाला तो चला ही गया चोर के द्वारा वाला मिला भी इसके हाथ नहीं लगा अब यह महिला कितने चक्कर काटे गी मेरे विचार मन में आ रहे थे उथल-पुथल मन कर रहा था मन में तरह-तरह के विचार उठा रहे थे , उसमें एक विचार मन में यह भी उठा जिस महिला का कान का बाला चोर ले जा रहा था चोर ले ही जाता उसका भला हो जाता मेरे मन में ऐसे विचार आया यह अपने हिंदुस्तान की कानूनी और पुलिस की प्रक्रिया बहुत ही पूर्व में खराब रही है, लेकिन आज की पुलिस की कार्यशैली वर्तमान सरकार के बहुत ही अच्छा बदला हुआ है , सरकार और प्रदेश सरकार बहुत ही अच्छी तरह से कार्य कर रही है भ्रष्टाचारी से मुक्त भारत हो रहा है परंतु इतनी पुरानी भ्रष्टाचारी है वह इतनी जल्दी सरकार कैसे दूर कर सकें क्योंकि रोम रोम में रंग रंग में भ्रष्टाचारी के कड पढ़ चुके थे आजादी के बाद से उसे जाने में थोड़ा समय लगेगा लेकिन भ्रष्टाचारी आज की वर्तमान सरकार अवश्य दूर करेगी यह मेरा विश्वास है।उसके बाद ट्रेन चल दी बाला उसको नहीं मिला वाले को कपड़े में पोस्टमार्टम कर दिया गया यह सब मैंने देखा ,
यही हाल आज मैं देख रहा हूं चिटफंड कंपनी और सेबी का है चिटफंड कंपनी का पैसा ग्राहक मांगता है तो चिटफंड कंपनी कहती है हमारा पैसा सेबी के पास जमा है, और सेबी ने उस पैसे को पोस्टमार्टम के तौर पर नत्थी कर दिया है, चिटफंड कंपनी के पास पैसा होता तो शायद जनता को मिल भी जाए परन्तु सेबी से पैसा लेना संभव नहीं है । क्योंकि पल्स और शारदा और भी बहुत सारी कंपनियां चिटफंड है जिनके नाम लिखना संभव नहीं है बहुत है कंपनियों का पैसा भी सेबी के पास जमा है, और भी बहुत सी छोटी मोटी कंपनियों का पैसा भी सेबी के पास जमा है आज तक देश जमा कर्ताओं का पैसा ना के बराबर प्राप्त हुआ है, सच्चा उदाहरण जिस तरह एक महिला का कान का बाला चोरी करके चोर ले गया उस वाले को जीआरपी पुलिस ने नहीं दिया गया क्योंकि कानूनी प्रक्रिया होगी तब कहीं उस महिला को बाला लौटाया जाएगा तो अपने देश की कानूनी प्रक्रिया तो आप समझते हैं ना कानून प्रक्रिया पूरी होगी ना उस महिला का कान का वाला कभी मिलेगा उसी प्रकार चित फंड का पैसा अगर सेवी में चला गया तो जनता को सरलता से पैसा मिलना संभव नहीं है क्योंकि उनकी कार्यवाही कार्य करने की प्रणाली बहुत ही कठिन है जो आम जनता तक सरलता से पैसा प्राप्त होना संभव नहीं है, अब हम बात करते हैं चिटफंड कंपनी की पैसा डूब चुका है इस पर हम किसको दोषी के हैं चिटफंड कंपनी को 2 सीटें हैं सेबी को दोषी कहें की आम जनता ने आप पर विश्वास किया और पैसा जमा किया वक्त आया मिलने का कानूनी दांव पेज में फस के पैसा सीवी के पास चला जाता है चिटफंड और सेबी के बीच मैं सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए क्योंकि लोगों का पैसा कैसे मिले यह सरकार तय करेगी सेबी जनता का पैसा लौटाने में सक्षम नहीं है उसकी कार्यशैली पैसा लौटाने की प्रक्रिया बहुत जटिल है जो आम जनमानस सीधा साधा आदमी चिटफंड कंपनी में पैसा जमा किया वह आम आदमी सेवी से पैसा नहीं पा सकता ऐसा मेरा विश्वास है, जैसे कि पल्स कंपनी कुछ झूठे लोग, अशिक्षित लोगों को 3 माह में पैसा डबल करने का लालच देकर, उनका पैसा लेकर रफूचक्कर हो जाते हैं,शारदा चिट फण्ड धोखाधड़ी मामला इसी तरह का एक उदाहरण है,भारत में चिट फंड का रेगुलेशन चिट फंड अधिनियम, 1982 के द्वारा होता हैआइये जानते हैं कि चित फण्ड क्या होता है?चिट फंड अधिनियम, 1982 की धारा 2 बी, के अनुसार,चिट फंड स्कीम का मतलब होता है कि कोई शख्स या लोगों का समूह या पडोसी आपस में वित्तीय लेन देन के लिए एक समझौता करे,इस समझौते में एक निश्चित रकम या कोई चीज एक तय वक्त पर किश्तों में जमा की जाती है और परिपक्वता अवधि पूरी होने पर ब्याज सहित लौटा दी जाती है,भारत में चिट फंड का रेगुलेशन चिट फंड अधिनियम, 1982 के द्वारा होता है. इस कानून के तहत चिट फंड कारोबार का पंजीयन व नियमन संबद्ध राज्य सरकारें ही कर सकती हैं चिट फंड एक्ट 1982 के सेक्शन 61 के तहत चिट रजिस्ट्रार की नियुक्ति सरकार के द्वारा की जाती है. चिट फंड के मामलों में कार्रवाई और न्याय निर्धारण का अधिकार रजिस्ट्रार और सम्बंधित राज्य सरकार का ही होता है,करेंसी स्वैप का शाब्दिक अर्थ होता है मुद्रा की अदला बदली,जब दो देश/ कम्पनियाँ या दो व्यक्ति अपनी वित्तीय जरूरतों को बिना किसी वित्तीय नुकसान के पूरा करने के लिए आपस में अपने देशों की मुद्रा की अदला बदली करने का समझौता करते हैं तो कहा जाता है कि इन देशों में आपस में करेंसी स्वैप का समझौता किया है। चूंकि हर चिट कम्पनी; एजेंटों का नेटवर्क तैयार करने के लिए पिरामिड की तरह काम करती है. अर्थात जमाकर्ता और एजेंट को और ललचाया जाता है ताकि वो नया सदस्य लायें और उसके बदले में कमीशन लें,इस प्रक्रिया में आरंभिक निवेशकों को परिपक्वता राशि या भुगतान नए निवेशकों के पैसे से किया जाता है औ,र यही क्रम चलता रहता है,दिक्कत तब आती है जब पुराने निवेशकों की संख्यानए निवेशकों से ज्यादा हो जाती है अर्थात जब नकद प्रवाह में असंतुलन या कमी आ जाती है और कंपनी लोगों को उनकी परिपक्वता अवधि पर पैसे नहीं लौटा पाती है तो चिट फण्ड कंपनी पैसा लेकर गायब हो जाती है,भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी की चेतावनियों के बावजूद बेहद कम समय में अमीर बनने की चाहत लोगों के मेहनत की कमाई को डुबो रही है आम लोगों से सैकड़ों-हजारों करोड़ इकट्ठे करने के बाद जब पैसों की वापसी का समय आता है तो चिटफंड कंपनियां अपनी दुकान बंद कर लेती हैं,ऐसे में लोगों के पास अपनी किस्मत को कोसने के अलावा कोई चारा नहीं बचता, कुछ ऐसा ही शारदा घोटाले में हुआ है. शारदा चिटफंड स्कैम में लोगों के साथ बड़े वादे किए गए थे, उनकी रकम पर 34 गुना रिटर्न देने का भी वादा किया गया था. अब सवाल उठता है कि कैसे आम आदमी पहचाने की उसके साथ स्कीम में फ्रॉड हो रहा है,पोस्ट आफिस और बैंक जहां साथ से आठ फीसदी ब्याज देते हैं, वहीं ऐसी कंपनियां रकम को दोगुनी और तीनगुनी करने के वादे करती हैं, दरअसल, इन तमाम योजनाओं में एक बात आम है, वह यह कि नए निवेशकों के पैसों से ही पुराने निवेशकों की रकम चुकाई जाती है यह एक चक्र की तरह चलता है,दिक्कत तब होती है जब नया निवेश मिलना कम या बंद हो जाता है,आम कंपनियों के मुकाबले ये लोग ज्यादा पैसे पर एजेंट को नौकरी ऑफर करते हैं, लोगों से मिली रकम का 25 से 40 फीसदी तक एजेंट को कमीशन के तौर पर मिलता हैं. रोजगार के दूसरे मौके नहीं होने की वजह से कस्बों और गांवों में पढ़े-लिखे युवक इन कंपनियों के एजेंट बन जाते हैं। चिटफंड कंपनी एक अच्छी व्यवस्था है छोटे छोटे लोग कमजोर करीब लोग थोड़ा थोड़ा पैसा इकट्ठा करके एकमुश्त रकम पाए जाते हैं जो उनके जीवन के लिए लाभदायक सिद्ध होता है अधिकतर चिटफंड कंपनी में छोटा-छोटा दुकानदार छोटी-छोटी आमदनी वाला व्यक्ति इसमें अधिकतर जुड़ा हुआ होता है क्योंकि वह है थोड़े थोड़े पैसे से एकमुश्त रकम पा जाता है जिससे उसका कोई ना कोई कार आसानी से होते रहते हैं।
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