आषाढ़ माह की द्वितीया तिथि को उड़ीसा में पुरी नामक स्थान पर एवं अन्य शहरों में भी जगन्नाथ रथयात्रा बहुत उत्सव एवं धूमधाम से मनायी जाती है। इस वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा 1 जुलाई को है। . इस वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि का प्रारंभ 30 जून को सुबह 10:49 से हो रहा है, जिसका समापन 01 जुलाई को दोपहर 01: 09 पर होगा पुरी जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है. वर्त्तमान मंदिर 800 वर्ष से अधिक प्राचीन है पुरी की रथ यात्रा विश्व प्रसिद्व है पुरी रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ बनाए जाते है. रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है. . बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है. देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन' या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ' नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' कहते हैं. इसका रंग लाल और पीला होता है.
इन विशाल रथों को भक्तगण और श्रद्धालु खिचते है। रथ यात्रा जगन्नाथ मंदिर से प्रारंभ होकर गुंदीचा मंदिर तक पहुंचती है रथयात्रा की परंपरा राजा इंद्रद्युम्न के शासन काल से ही चली आ रही है द्वितीया से नवमी तक भगवान गुंदीचा मंदिर में विश्राम करते हैं गुंडिचा स्थान पर ही विश्वकर्मा जी ने भगवान जगन्नाथ बलराम सुभद्रा जी के विग्रह का निर्माण किया था इसी कारण गुंदीचा स्थान को भगवान का जन्म स्थान माना जाता है और भगवान अपनी इच्छा से वर्ष में एक बार अपने जन्म स्थान की यात्रा करते हैं आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन भगवान गुंडिचा मंदिर से रथ द्वारा अपने वर्तमान मंदिर के लिए यात्रा करते हैं ऐसा माना जाता है कि भगवान के निवास के दौरान सभी तीर्थ वहां उपस्थित होते हैं मान्यता के अनुसार, रथ खींचने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है यदि कोई व्यक्ति इस दौरान वहां स्नान करता है भगवान के दर्शन पूजन करता है तो उसे सभी तीर्थों के लाभ मिलते हैं उसे अर्थ धर्म काम मोक्ष चारों को पुरुशात्रो की प्राप्ति होती है - ज्योतिषाचार्य एस.एस. नागपाल स्वास्तिक ज्योतिष केन्द्र, अलीगंज, लखनऊ
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