राष्ट्रीय रामायण मेले के समापन दिवस पर मानस मर्मज्ञों ने दिए व्याख्यान
चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि। 49वें राष्टी्रय रामायण मेले के समापन दिवस पर बांदा के मानस किंकर रामप्रताप ने कहा कि जहां पर संतों का समाज जुडता है वहां पर तीर्थें का राजा प्रयाग स्वयं आ जाता है। चित्रकूट के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यहां की धरा सदेव से पावन पवित्र रही है। इसी धरा में अनुसुइया आश्रम से अपने तप व सतीत्व बल के प्रभाव से अनुसुइया माता ने मंदाकिनी गंगा प्रकट की। कामदगिरि के दर्शन मात्र से सभी दुखों का समन होता है। इसीलिए वाल्मीक जी ने प्रभु श्रीराम को कामदगिरि जा करहूं निवासू, जहां तुम्हार सब भांति सुपासू। कामदगिरि के महत्व के बारे में बताया कि कामद गिरि भै राम प्रसादा, अवलोकत अपहरत विषादा। बताया कि, कामदगिरि के मात्र दर्शन से दुःखों का शमन ऐसे होता है जैसे कष्टों को कोई जबरन खींच ले।
विद्वत गोष्ठी में बोलते विद्वतजन।
पूर्व प्रवक्ता सत्यदेव त्रिवेदी बांदा ने बताया कि रहीम खानखाना सम्राट अकबर के नौ रत्नों में प्रमुख थे। दरबार के षड्यंत्रों से दुखी होकर रहीम दास चित्रकूट आ गये थे और यहां आकर एक भरभूंजा की दुकान में आकर भार झोकने का काम किया करते थें। उनकी विद्वता से प्रभावित होकर काफी जनसमूह एकत्रित हो जाया करता था। तुलसी ने रहीम से प्रश्न कर पूछां धूल उडावत गज फिरत कहु रहीम केहि काज। इसके प्रतिउत्तर में रहीम ने कहा कि जेहि रज मुनि पत्नी तरी, सोई ढूढं़त गजराज। रहीम दास भगवान राम की भक्ति में मन लगाकर नित्य परिक्रमा किया करते थे। पयस्वनी नदी का जल पान किया करते थे। अकबर ने बीरबल को रहीम की जानकारी के लिए लगाया। चित्रकूट आकर उस भरभूजें के यहां पहुचकर रहीम से प्रश्न कर काव्य भाषा में पूछा जाके सिर असभार, वह कस झोकंत भार। इस पर रहीम ने उत्तर दिया कि भार झोक सब भार में रहिमन उतरेउ पार। बीरबल के रहीम से प्रश्न करने पर कि चित्रकूट क्यों आये। रहीम ने उत्तर में कहा था कि चित्रकूट में रम रहे रहिमन अवध नरेश जा पर विपदा परत है सोई आवत यहि देश।
सिंधु सभ्यता से भी प्राचीन है चित्रकूट तीर्थ : डा ललित
चित्रकूट। 49वें राष्ट्रीय रामायण मेला के समापन सत्र में विद्युत गोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रख्यात साहित्यकार व शोधकर्ता डा. चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ललित ने बताया कि चित्रकूट सृष्टि का आदिय केन्द्र है। आर्य सभ्यता के पूर्व की अनादीय जातियां चित्रकूट में अभी भी कोल भील के रूप में पाई जाती है। चित्रकूट विंध्याचंल पर्वत की श्रखंलाओं पर स्थित है और विध्यांचल हिमालय से भी प्राचीन है। यहां की सभ्यता सिंधु घाटी की सभ्यता से भी पुरानी है। डा. ललित ने बताया कि चित्रकूट के बदौसा क्षेत्र के कोलुहा के जंगलों में पहाडों में जो प्रागैतिहासिक चित्र खोज में मिले है उनसे भी सिद्ध होता है कि चित्रकूट सृष्टि रचना का सर्वाधिक प्राचीन क्षेत्र है। रामायण काल के महार्षि वाल्मीकि, वामदेव, महर्षि अत्रि, शरभंग और सुतीक्षण आदि के आश्रम इसी चित्रकूट में पाये जाते है। चित्रकूट क्षेत्र में प्राचीनतम गुफांये, शैलाश्रय, पाषाण प्रस्तर, चित्र तथा पाठा क्षेत्र की आर्य जातियों से पहले की आनाज भाषाएं व बोलियां भी इसी क्षेत्र में पाई जाती है। उन्होने बताया कि प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से भी यहां कि प्राकृतिक संपदा अतुलनीय है। प्राचीन महाभारत कालीन और रामायणकालीन अवशेष भी इसी धरती पर पाये जाते है। डॉ. ललित दीक्षित ने बताया कि भगवान राम ने इसी धरती को बनवास के लिए उपयुक्त माना था। महर्षि भारद्वाज, महर्षि वाल्मीक और महर्षि वामदेव ने इसी चित्रकूट मंण्डल में राम को बनवास काल में रहने की प्रेरणा दी थी। उन्होने बताया कि डॉ. राममनोहर लोहिया ने रामकथा को केंद्र में रखकर चित्रकूट में रामायण मेले की परिकल्पना की थी। जिसमें आनंद, रसबोध, दृष्टि और राष्ट्रीय एकता का प्रसार करने के लिए रामायण मेला प्रारंभ किया गया। रामकथा के माध्यम से विश्व को एक सूत्र में बाधनें, संमतामूलक समाज की रचना के लिए रामकथा के माध्यम से मानव के सुखशातिं प्रदान करने और चित्रकूट के समग्र विकास के लिए एक स्वप्न देखा था। जिससे रामायण मेला के माध्यम से पूरा किया जा रहा है। उन्होने आशा व्यकत की अगला 50वाँ राष्ट्रीय रामायण मेला अन्तर्राष्ट्रीय रामायण मेले के रूप में मनाया जाएगा।
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