देवेश प्रताप सिंह राठौर......
वरिष्ठ पत्रकार..
................... भारत देश में न्याय प्रक्रिया बहुत ही शिथिल मानी जाती है लेकिन बहुत सारे प्रश्न उठते हैं बहुत सारे जवाब बनते हैं इन सब के बीच एक प्रश्न है लोगों का जो कहते हैं बड़े-बड़े मुद्दे होते हैं सुप्रीम कोर्ट में बड़े-बड़े वकील जब उसके स्को सम्मिट करते हैं बड़े-बड़े लोगों का वहां पर रिट दायर की रात में भी दिन में भी सुनवाई शुरू हो जाती है औरों के केश सालों सालों सालों जीवन निकल जाता है निर्णय नहीं होता है ऐसी न्यायिक प्रक्रिया क्यों है यह लोगों के सवाल है, लोगों का कहना सत्य है सलमान खान हिरण केस में जब जमानत होती है रात कोर्ट बैठती है , दिल्ली के जहांगीरपुरी पर बुलडोजर चलता है गलत लोगों के अतिक्रमण के खिलाफ चंद घंटों में निर्णय हो जाता है,
दिल्ली की जहांगीरपुरी की हालत आपने देखी है सड़कों पर दुकान बनाए हुए हैं यह किसकी हिम्मत है जो न्याय सिस्टम को बिल्कुल मजाक बना रखा है , सड़कों पर दुकानें बन जाए फुटपाथ पर दुकानें बन जाए अगर सरकार उनको अतिक्रमण करती है प्रश्न यह बनता है 30 वर्षों से इन पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई और पूर्व सरकारों ने कार्रवाई क्यों नहीं की , हम किसी न्यायिक प्रक्रिया पर टीका टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं न्यायिक प्रक्रिया वह सर्वोपरि है उसका हर स्थिति में हर परिस्थिति में हर व्यक्ति सम्मान करता है उसे करना चाहिए परंतु जब ऐसे ऐसे मुद्दे होते हैं, वही कोर्ट दसियों वर्ष 20 साल पच्चीस पच्चीस साल की 30 साल से अधिक बाद में चलते हैं निर्णय नहीं होते और जहां पर बहुत से देखने को मिलता है चंद घंटों में ही कोर्ट बैठ जाती है और निर्णय हो जाते हैं ऐसी व्यवस्थाएं ना हो पर जो केस वर्षों से पेंडिंग पड़े हैं उनका निस्तारण होना चाहिए, उस के संदर्भ में बहुत बड़े-बड़े लेख छपते हैं जजों की कमी है और बहुत सी कमियों को दर्शाते हैं लेकिन जब इस तरह के के सामने होते हैं जो चरणों में निर्णय हो जाते हैं और बैठ जाती है रात में दिन में छुट्टी के दिन कभी भी किसी समय बुलाकर कोर्ट को बैठा दिया जाता है और कार्रवाई शुरू होकर निर्णय हो जाता है,उस समय भी बहुत सी कमियां होती है जज उपलब्ध नहीं होते हैं जिसके अभाव होता है लेकिन कुछ केस ऐसे होते दिन का निर्णय जल्दी सुनाया जाना आवश्यक होता है लेकिन बहुत सारे निर्णय ऐसे हैं जो लोगों के जीवन के साथ जुड़े हुए हैं रोजी रोटी के साथ जुड़े हुए हैं उन पर दशकों तक निर्णय नहीं होते तारीख पर तारीख पर तारीख पर तारीख मिलती रहती है 1 तारीख ऐसी आती है जो केस लड़ता है उसकी भी जीवन की अंतिम तारीख आ जाती है निर्णय नहीं हो पाता ऐसा चीजों पर विचार किया जाए तो ऐसा लगता है कहीं ना कहीं अभी भी जो सिस्टम बना हुआ है कमजोर कमजोर है पहुंच वाला पहुंच वाला है आज भी है कल भी था और व्यक्त की हैसियत और उसका कद देखकर निर्णय और डिसीजन हो जाते हैं कभी कभी ऐसा महसूस होता है।
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