चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि। डा. राममनोहर लोहिया ने रामायण मेले की परिकल्पना के साथ आयोजन की जो योजना प्रस्तुत की थी उसमें कहा था कि रामायण मेले का ध्येय एक ऐसे आनंद का सृजन होना चाहिए जिसमें आस्तिक और नास्तिक समान रूप से अपने घर जा सकें। इसके लिए मेला में गायन, नृत्य, अभिनय आदि के कार्यक्रम होना चाहिए। रामायण मेला इस योजना का पूर्णतः पालन करते हुए मंच में भव्य संस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति कराते है। जिनमें भजन, लोक गीत, लोक नृत्य, शास्त्रीय नृत्य आदि कार्यक्रम होते है। उक्त विचार प्रकट करते हुए मेले के महामंत्री डा. करूणा शंकर द्विवेदी ने बताया कि भारतीय संस्कृति में लोक जीवन और उसकी विविधताओं का बहुत महत्व है। लोक जीवन में अनेक ऐेसे सवेंदनाओं के क्षण आते है जैसे दुःख, सुख, हर्ष, विषाद, संयोग, वियोग आदि। इन क्षणों में लोक गीत व नृत्य समाज को सहारा देते है। 49वें राष्ट्रीय रामायण मेला के मंच से चतुर्थ दिवस कलाकारों द्वारा लोक गीत भजन प्रस्तुत किए गये। जिसमें रघुबीर सिंह यादव झांसी के गीतों में बोल
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महोत्सव में मौजूद दर्शक। |
रहे हे कामदगिरी हमें शक्ति दो तुमको राम दोहाई। नयन में रमों हो प्रिया के प्रिया। अबला जान अकेली बन में तुमने सिया चुराई आदि गीत प्रस्तुत किए। जिनकों दर्शकों ने जमकर सराहा व तालियों की गडगडाहट से उनका स्वागत किया। वहीं रामाधीन आदि मउरानीपुर ने भक्तन के तुम रघुवीर शरण हम आये तुम्हारी। चूनर भींज गई राम रस गूंदना, भज ले सीता राम जप ले सीता राम के गीत गाकर समा बाधं श्रोताओं को आनंद विभोर किया। लखनउ के सरन म्यूजिकल ग्रुप की सरला गुप्ता की टीम ने देवी गीत सोहर, राम की बाल्यावस्था व यूवावस्था एवं विवाह गीत गाकर मनोहारी वर्णन किया। वृदांवन की ख्यातिलब्ध रास मडंली द्वारा धनुष भंग लीला का ंमंचन किया गया। धनुष तोडे़ जाने के पश्चात् हर्ष का वातावरण प्रकट हुआ। जनक का परिताप समाप्त हुआ।
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