बुंदेलखंड दिवस के रूप में मनाई शंकर लाल महरोत्रा की जयंती
प्रधानमंत्री मोदी बुंदेलियों के खून को स्याही न समझें : प्रवीण
खागा/फतेहपुर, शमशाद खान । बुंदेलखंड राज्य आंदोलन के जनक स्व. शंकर लाल महरोत्रा जी की जयंती पर बुधवार को बुंदेलखंड राष्ट्र समिति के स्वयंसेवकों ने बुंदेलखंड दिवस के रूप में मनाया। खागा के हरदों गांव समिति के कार्यालय में कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें स्व शंकर भैया के चित्र में पुष्प माला चढा दीप प्रज्जवलित कर उन्हे श्रद्धांजलि दी गई। बुंदेलखंड राष्ट्र समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण पांडेय के नेतृत्व में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रिकार्ड 26 वीं बार खून से पत्र लिख राज्य बुंदेलखंड की मांग की गई।
पीएम मोदी को पत्र लिखने के लिए खून निकलवाते प्रवीण पांडेय। |
राष्ट्रीय अध्यक्ष के नेतृत्व में सभी स्वयं सेवकों ने स्व. शंकर भैया के चित्र पर माल्यर्पण कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित कर बुंदेलखंड राज्य आंदोलन के लिए अपनी अंतिम सांस तक संघर्ष का संकल्प लिया। स्वयं सेवकों ने खून से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख अलग राज्य बुंदेलखंड बनाने के वादे को याद दिलाया। बुंदेलखंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे बुंदेलखंड राष्ट्र समिति के स्वयं सेवकों ने संकल्प लेकर कहा कि स्व. शंकर लाल मेहरोत्रा की कुर्बानियां बेकार नहीं जाएंगी। हम उनके सपने को पूरा करेंगे। अपने संबोधन में राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बताया कि बुंदेलखंड राज्य आंदोलन के जनक शंकर लाल मेहरोत्रा का जन्म नौ मार्च 1948 को झांसी के प्रतिष्ठित कारोबारी सुंदर लाल मेहरोत्रा के घर हुआ था। उनके बेटे नीरज मेहरोत्रा बताते हैं कि पापा पहले कांग्रेस पार्टी में थे और मध्य प्रदेश के कोषाध्यक्ष थे। वे मानते थे कि जब तक बुंदेलखंड दो राज्यों के बीच पिसता रहेगा, इसका भला नहीं होने वाला। इसके लिए बुंदेलखंड अलग राज्य होना जरूरी है। इसके लिए उन्होंने अपने कुछ साथियों के साथ 17 सितंबर, 1989 को नौगांव के नजदीक महोबा जिले के धवर्रा गांव में हनुमान मंदिर में बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया और कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया। आंदोलन को गति देने के लिए पूरे बुंदेलखंड में सभाएं, धरना प्रदर्शन शुरू करवाए लेकिन जब आंदोलन के लिए धन की कमी पड़ने लगी तो उन्होंने नौगांव में स्थापित अपनी डिस्टिलरी फैक्ट्री सवा करोड़ में बेच दी। अपने कारोबार को छोड़ दिया। 1993 में उन्होंने चर्चित टीवी प्रसारण बंद अभियान चलाया, 1994 में मध्यप्रदेश विधानसभा में बुंदेलखंड राज्य के लिए पर्चे फेंके, 1995 में लोकसभा में पर्चे फेंके जहां तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने उनको नौ साथियों सहित गिरफ्तार करवा दिया। बाद में विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने उनको छुड़वाया, फिर उन्होंने दिल्ली में जंतर मंतर पर एक महीने तक धरना प्रदर्शन किया जो अटल जी के सरकार आने पर बुंदेलखंड राज्य बनाने के आश्वासन के बाद खत्म हुआ। जून 1998 में झांसी के बरुआ सागर में हुई हिंसा आगजनी से अटल सरकार इतनी नाराज हो गयी उसने न केवल मेहरोत्रा जी व उनके साथियों पर रासुका लगा दी बल्कि 2000 में उत्तराखंड, झारखंड व छत्तीसगढ़ के साथ बुंदेलखंड राज्य भी नहीं बनाया। और इसी सदमे में 22 नवंबर, 2001 को उनकी मृत्यु हो गयी। उनके जाने के बाद आंदोलन की धार कमजोर पड़ गयी। खून पत्र लिखने वालो में मुख्य रूप से ऐराया ब्लॉक अध्यक्ष बच्चा तिवारी, उपाध्यक्ष शक्ति सामंत, जिला मंत्री राजबहादुर मौर्या, समिति के खागा जिलाध्यक्ष अवधेश मिश्रा, महामंत्री जयवर्धन त्रिपाठी, छात्र मोर्चा ब्लॉक अध्यक्ष मानस तिवारी, चेतन तिवारी, रवि वर्मा, अशोक वर्मा, देवब्रत, अजय, कोमल, नीरज, विनय, शनि, रितेश, प्रसून आदि बुन्देली साथी मौजूद रहे।
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