देवेश प्रताप सिंह राठौर..............
(ऑल मीडिया जर्नलिस्ट एसोसिएशन महासचिव उत्तर प्रदेश)
पद और कद और धन और बल के अहंकार कहा जाता है। इसका अर्थ उस पहचान से है, जो आपने धारण कर रखी है। आमतौर पर अंग्रेजी भाषा में लोग अहंकार को ‘ईगो’ समझ लेते हैं। यह ईगो नहीं है, यह आपकी पहचान है। आपकी बुद्धि हमेशा आपकी पहचान की गुलाम होती है। आप जिस चीज के साथ भी अपनी पहचान बना लेते हैं, यह उसी के इर्द-गिर्द काम करती है। लोग अपनी पहचान ऐसी चीजों के साथ स्थापित कर लेते हैं, जिन्हें उन्होंने कभी देखा भी नहीं है, और उनके भाव इन्हीं चीज़ों से जुड़ जाते हैं। यही चीजें उनके जीवन की दिशा तय करती हैंलेकिन आज हर किसी का एक देश है और यहां तक कि हर किसी का एक फुटबॉल क्लब भी है। क्योंकि दोनों के ही झंडे और चिह्न होते हैं। तो राष्ट्रीयता एक नया विचार है। बस डेढ़-दो सौ साल से ही राष्ट्रीयता का इतना
जबर्दस्त भाव हमारे यहां आया है। हमने अपनी नस्ली, जातीय और दूसरी तरह की पहचानों को राष्ट्रीय पहचान की ओर सरका दिया है। जैसे ही आपके मन में आता है कि मैं इस देश का हूं तो उस देश का झंडा, राष्ट्रीय चिह्न, राष्ट्र गान आपके भीतर एक भाव जगाते हैं। इसमें कोई दिखावा नहीं होता, यह सब वास्तविक होता है। यह वास्तविक है, क्योंकि लोग इसके लिए जान देने को भी तैयार हैं, लेकिन ये सब बस एक पहचान ही तो है। आप इसे कभी भी बदल सकते हैं। आप किसी दूसरे देश में जाकर बस सकते हैं और फिर वह आपका बन सकता है। जिस पल आप अपनी पहचान किसी चीज के साथ स्थापित कर लेते हैं, आपकी बुद्धि पूरी तरह से और हमेशा इस पहचान की रक्षा करती है और इसी के इर्द-गिर्द काम करती है। कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए।
No comments:
Post a Comment