देवेश प्रताप सिंह राठौर.................
के क्या ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है जिसका अर्थ है कि जीवन में ईमानदार और सच्चा होना, यहां तक कि बुरी परिस्थितियों में भी ईमानदारी को सबसे अच्छी नीति माना जाता है। ईमानदारी के अनुसार यह सबसे अच्छी नीति है, किसी को भी किसी भी सवाल या दुविधा का जवाब देते समय अपने जीवन में हमेशा वफादार होना चाहिए और सच्चाई को बताना चाहिए।जीवन में ईमानदार, वफादार और सच्चा होने के कारण व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है। एक ईमानदार व्यक्ति हमेशा खुश और शांतिपूर्ण बन जाता है क्योंकि उसे अपराध बोध के साथ नहीं रहना पड़ता है। हमारे जीवन में हर किसी के साथ ईमानदार होने से हमें मानसिक शांति प्राप्त करने में मदद मिलती है। क्योंकि हमें उस झूठ को याद नहीं करना पड़ता है जो मने लोगों को बताया है ताकि हम उसे बचा झूठ बोलने वाले आज बहुत ही कुछ क्षणों के लिए सुकून में रहते हैं लेकिन अंत बहुत खराब होता है इसलिए
सच्चाई का जीवन सबसे अच्छा और स्थाई होता है उसे अपनाने की जरूरत है। में किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए तीन चीज की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, जिनमें मेहनत, समझदारी और इमानदारी का समावेश होता है।वस्तव में देखा जाए तो इमानदारी एक अति अनमोल आभूषण की भांति होता है। इसे देखा या महसूस तो नहीं किया जा सकता, लेकिन यदि ईमानदारी को जीवन में उतार लिया जाए तो जीवन बहुत खुशहाल हो जाएगा।इमानदारी वास्तव में एक उच्चतम चरित्र के संस्कार और गुण की एक शाखा स्वरूप है। यह एक ऐसी अनोखी कला है, जिसे सीखने के बाद व्यक्ति अपने लक्ष्य के चरम सीमा को भी आसानी से छू सकता है।हम सभी ने बचपन में यह कहावत तो जरूर सुनी होगी, कि ईमानदारी सर्वश्रेष्ठ नीति होती है। वास्तविकता में शत-प्रतिशत कामयाबी की पहली सीढ़ी इमानदारी ही होती है।है जिस कार्य, विचार, लक्ष्य इत्यादि को आपने पूरा करने का निश्चय किया है उसे बिना किसी टालमटोल के उचित समय पर पूरा किया जाए।आज के समय में लोग केवल अपना स्वार्थ साधने में ही व्यस्त रहते हैं, भले ही वह उचित तरीके से किया जाए या अनुचित। आज के बनावटी लोग इमानदारी जैसे सर्वश्रेष्ठ गुणों का कोई महत्व नहीं समझते हैं। यह वास्तविकता है कि आज का समाज झूठ और फरेब के आधार पर आज अधिकतर लोग यही कहते मिल जाएंगे कि झूठ बोलने में हर्ज ही क्या है। झूठ की शान तब और बढ़ जाती है जब यह कहा जाता है कि कोई काम यदि झूठ बोलने से बनता हो या किसी की जान बचती हो तो झूठ बोलने में कोई हर्ज नहीं।मगर झूठ का मामला यहीं नहीं रुकता। आज यह कारोबार है, जीवनशैली है। हमें अपने इर्दगिर्द तमाम ऐसे लोग मिल जाएंगे जो सुबह से शाम तक कई बार झूठ बोलते हैं। उनके लिए यह सामान्य बात है और यह इस हद तक जा पहुंचता है कि इसमें उन्हें मजा आने लगता है। अपने झूठ के सहारे किसी दूसरे को चकित या भ्रमित करना उनके लिए ओलंपिक में भाग लेने से कम नहीं है। बहरहाल, ऐसे लोग अपनी इस आदत या शौक के बारे में चाहे जो सोचें लेकिन मनोचिकित्सकों की निगाह में यह एक बीमारी है। उनकी सलाह है कि आप सावधान हो जाएं। हो सकता है कि आप पैथोलॉजिकल लायर यानी झूठ बोलने के शिकार हों। ऐसे व्यक्ति अपने हिस्टीरिकल व्यक्तित्व की न में बिना हानि-लाभ के भी झूठ बोलते हैं। वे अपनी बात शुरू ही झूठ से करते हैं। दूसरे, कुछ लोग अपनी ही बात को झूठ साबित करने पर तुले रहते हैं। वे सुबह कुछ कहते हैं और शाम को कुछ और। मगर ऐसे लोगों का झूठ समाज को नुकसान नहीं पहुंचाता। हां, इससे उनसे घर वाले व नजदीक के दूसरे लोग जरूर परेशान होते हैं।घर के माहौल, अतिरिक्त दबाव, भय या आनंद के लिए भी कई दफाबच्चों को झूठ बोलने की आदत पड़ जाती है। वे बात-बात में झूठ बोलते हैं। बड़े होकर यही बच्चाे बिना बात साधारण-सी घटना को बढ़ा-चढ़ाकर बताने की आदत पाल लेते हैं। धीरे-धीरे यह झूठ उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है और उन्हें अपने झूठ बोलने का अहसास ही नहीं रह जाता।रोजमर्रा से जुड़ी घटनाओं को लें और देखें कि आप झूठ पकड़ने में कितने होशियार हैं। आप अपने भाई या बेटे से पूछें कि क्या तुम सिगरेट पीते हो या कोई महिला अपने पति से पूछे कि तुम रोजाना देर से क्यों घर आते हो? क्या तुम्हारे ऑफिस में काम बढ़ गया है या तुम मुझसे कुछ छिपा रहे हो? जो भी उत्तर मिलेगा, उससे यह जाना जा सकता है कि वे झूठ बोल रहे हैं या झूठ। सच का पता लगाने के लिए किसी खास प्रशिक्षण की जरूरत नहीं होती। न ही सामने वाले को कोई अपराधी मानने की जरूरत है। बस उनकी आवाज पर ध्यान दें क्योंकि आवाज के सहारे यह पता लगाया जा दूसरी है कि हम उस पर ध्यान नहीं देते, खासकर तब जब बोलने वाला थोड़ा चालाक हो। इसलिए प्रश्न पूछने के बाद बोलने वाले की आवाज पर ध्यान देना चाहिए। झूठ बोलते ही बोलने वाले की सामान्य व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। या तो वह जरूरत से ज्यादा संयमित दिखने की कोशिश करेगा या हाथों का सहज चलना एकाएक बंद हो जाएगा।धोखाधड़ी के मामलों पर अध्ययन कर रहे विशेषज्ञों ने माना है कि मनुष्य में सच-झूठ में अंतर करने की क्षमता निहायत कमजोर होती है। लंबे समय तक शोधकर्ता यही तर्क देते रहे कि झूठ बोलने वाले नजरें मिलाने से कतराते हैं। सच न बोलने वाले सामान्य लोगों से ज्यादा नजरें मिलाकर और दम से बात करते हैं। झूठ बोलने वाला ऐसा इसलिए करता है ताकि अपने चारों तरफ सच का वातावरण तैयार कर सके और यही वह स्थिति है जहां हम धोखा खा जाते हैं।अब तक शोधकर्ताओं ने झूठ बोलने वाले के बारे में यही कहा है कि झूठ बोलने वाला प्रश्न पूछे जाने पर रुक-रुक कर और सोच-सोचकर बोलता है। उसका वाक्य-विन्यास छोटा होता है। उसकी भाषा में गलतियां होती हैं और पूरी बातचीत के दौरान स्थिर-सा रहता है।
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