देवेश प्रताप सिंह राठौर
(वरिष्ठ पत्रकार)
......... विश्वासघात एक ऐसा शब्द है आज के मानव में कुछ ना कुछ हर जगह व्याप्त है जिसे हम धोखा देना कह सकते हैं इनसे बचने की जरूरत है क्योंकि अपने ही घात लगाकर विश्वासघात करते हैं, इसी पर गुरु हरगोविंदसिंहजी को अपने साथी पाइंदे खाँ पर खुद से ज्यादा भरोसा था। उनके बाकी साथी मौका मिलने पर उन्हें इस बात के लिए चेताते भी थे, लेकिन गुरुजी उनकी एक न सुनते, क्योंकि युद्ध के मैदान में मुगलों के छक्के छुड़ाने में पाइंदे खाँ की महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी।बार-बार की जीत और गुरु के अत्यधिक भरोसे के कारण पाइंदे खाँ का सिर घूम गया। वह सार्वजनिक रूप से अपने बारे में बढ़-चढ़कर बातें करने लगा और सारी सफलताओं का श्रेय वह अपने आपको देने लगा।
कई बार उसने गुरु के भरोसे को भी तोड़ा, लेकिन उन्होंने हर बार अनदेखी कर दी। एक बार उसकी अक्षम्य गुस्ताखी पर गुरु ने घोषणा की कि पाइंदे खाँ को दरबार से निकाल दिया जाए।इस पर वह गुरु को चुनौती देते हुए बोला- मैं जहाँपनाह से तुम्हारी शिकायत करके तुम्हें सजा दिलाऊँगा। वैसे भी मेरे जाने के बाद तुम्हारी सेना मुगल सेना के सामने टिक नहीं पाएगी।
इसके बाद बौखलाया पाइंदे खाँ सीधे दिल्ली पहुँचा और गुरु के विरुद्ध शाहजहाँ के कान भर दिए। जल्द ही काले खाँ के नेतृत्व में मुगल सेना गुरु को सबक सिखाने के लिए पहुँच गई। जलंधर में मुगल व सिख सेना का मुकाबला हुआ। संख्या में कम होने के बाद भी सिखों ने मुगलों के हौसले पस्त कर दिए। इस बीच पाइंदे खाँ गुरु की ओर लपका और उनसे बोला- अब भी माफी माँग लो वर्ना धूल में मिला दिए जाओगे। गुरु- तू बातें न बना, वार कर। इस पर उसने गुरु पर वार किया, लेकिन चूक जाने के कारण जमीन पर जा गिरा। गुरु उससे बोले- अपनी गलती मान ले। मैं तेरा पुराना रुतबा लौटा दूँगा। लेकिन वह गुरु पर तलवार लेकर दौड़ा। गुरु को न चाहते हुए भी उसका वध करना पड़ा, क्योंकि अहंकारी और विश्वासघात दोनों का पतन सुनिश्चित है।
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