बांदा कृषि विश्वविद्यालय में किया जा रहा प्रशिक्षण का आयोजन
बांदा, के एस दुबे । अनुसूचित जाति वर्ग के युवाओं के लिए दस दिवसीय मशरूम उत्पादन तकनीकि प्रशिक्षण का कुलपति डा. यूएस गौतम ने उद्घाटन किया। विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित भारत में उच्च कृषि शिक्षा सुढ़ृढ़ीकरण एवं विकास योजना के तहत अनुसूचित जाति वर्ग के युवाओं के लिए 10 दिवसीय मशरूम उत्पादन तकनीक प्रशिक्षण का आयोजन कुलपति डा. यूएस गौतम के मार्गदर्शन में दिनांक 2 फरवरी से शुरू किया गया है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के सयोंजक और पादप रोग विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डा0 वीरेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य बांदा व बुंदेलखंड के अन्य क्षेत्रों के अनुसूचित जाति वर्ग के युवाओं में मशरूम उद्यम के प्रति तकनीकी एवं व्यावसायिक जागरूकता पैदा करना है।
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प्रशिक्षण को संबोधित करते अतिथि |
विश्वविद्यालय के मशरूम यूनिट के प्रभारी व इस कार्यक्रम के सचिव डा. दुर्गा प्रसाद ने बताया कि इस कार्यक्रम में प्रतिभागियों को मशरूम व्यवसाय से संबंधित समस्त पहलुओं जैसे उत्पादन प्रक्षेत्र की संरचना, संवर्धन एवं संरक्षण, स्पान उत्पादन तकनीक, प्रमुख खाद्य व औषधीय मशरुम की उत्पादन तकनीक, मशरूम के प्रमुख रोग, कीट एवं विकार के लक्षण एवं रोकथाम, विभिन्न व्यंजन, प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन व विपणन इत्यादि पर सम्बंधित विशेषज्ञों के द्वारा वृहद् ढंग से प्रशिक्षण दिया जायेगा, जिससे कि इस दस दिवसीय प्रशिक्षण उपरांत प्रशिक्षणार्थी मशरूम को एक उद्यम के रूप में शुरू कर सकें और यह व्यवसाय उनके लिए एक अच्छा स्वरोजगार बन सके। प्रशिक्षण उपरांत प्रशिक्षणार्थियों को मशरूम किट व प्रमाण पत्र भी वितरित किया जायेगा।
बताया गया कि मौसम के अनुकूल प्रजातियों का चुनाव करके मशरूम की खेती पूरे वर्ष भर की जा सकती है। मशरूम उत्पादन से 50 से 100 प्रतिशत लाभ त्वरित पाया जा सकता है। इसे घर के किसी भी नमी वाले कोने में उगाया जा सकता है। इसके लिए काफी अधिक जगह की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है। मशरूम की फसल साधारणतया एक से दो महीनों में तैयार हो जाती है। लोग मशरूम की खेती घर का सारा काम करने के बाद बचे समय में कर सकते हैं। इसके लिए अलग से समय देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। महिलाओं के लिए उद्यमिता व अर्थोपार्जन का एक अच्छा जरिया बन सकता है। ग्रामीण क्षेत्रो में न केवल लोग इसकी सब्जी बनाकर खाते हैं बल्कि बाजारों में बेचकर आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं। कृषि विश्वविद्यालय युवाओं व उत्पादकों के लिए नियमित रूप से मशरूम की खेती और इसके बीज तैयार करने के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है।
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