देवेश प्रताप सिंह राठौर
(वरिष्ठ पत्रकार)
..... आपको बताना चाहते हैं भारत देश राजनीति पहले भी चलती थी और आज भी चलती हैजिसके कारण विकास की गति रुक जाती है और अच्छे आदमियों का चयन होना मुश्किल हो जाता है,भगत सिंह के संदर्भ में मैंने कुछ इतिहास के पन्नों को पलटा जिसमें मैंने कुछ भगत सिंह के संबंध में जो जानकारी प्राप्त हुई उससे नेहरू परिवारों एवम् गांधी ने जिन्होंने इस तरह का कृत्य किया जिसे देश कभी माफ नहीं कर सकता है क्योंकि भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव की फांसी टल सकती थी जाने क्या है, आप सब को बताना चाहता हूं कि ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय‘ (BHU) के संस्थापक पंडित मदनमोहन मालवीय जी नें 14 फ़रवरी 1931 को Lord Irwin के सामने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी रोकने के लिए Mercy Petition दायर की थी ताकि उन्हें फांसी न दी जाये और कुछ सजा भी कम की जाएl Lord Irwin ने तब मालवीय जी से कहा कि आप कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष है इसलिए आपको इस Petition के साथ नेहरु, गाँधी और कांग्रेस के कम से कम 20 अन्य सदस्यों के पत्र भी लाने होंगेl
जब मालवीय जी ने भगत सिंह की फांसी रुकवाने के बारे में नेहरु और गाँधी से बात की तो उन्होंने इस बात पर चुप्पी साध ली और अपनी सहमति नहीं दीl इसके अतिरिक्त गाँधी और नेहरु की असहमति के कारण ही कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी अपनी सहमति नहीं दीl वापस होने के बाद Lord Irwin ने स्वयं लंदन में कहा था कि "यदि नेहरु और गाँधी एक बार भी भगत सिंह की फांसी रुकवाने की अपील करते तो हम निश्चित ही उनकी फांसी रद्द कर देते, लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा महसूस हुआ कि गाँधी और नेहरु को इस बात की हमसे भी ज्यादा जल्दी थी कि भगत सिंह को फांसी प्रोफेसर कपिल कुमार की किताब के अनुसार ”गाँधी और Lord Irwin के बीच जब समझौता हुआ उस समय इरविन इतना आश्चर्य में था कि गाँधी और नेहरु में से किसी ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को छोड़ने के बारे में चर्चा तक नहीं की Lord Irwin ने अपने दोस्तों से कहा कि ‘हम यह मानकर चल रहे थे कि गाँधी और नेहरु भगत सिंह की रिहाई के लिए अड़ जायेंगे और हम उनकी यह बात मान लेंगेlभगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी लगाने की इतनी जल्दी तो अंग्रेजों को भी नही थी जितनी कि गाँधी और नेहरु को थी क्योंकि भगत सिंह तेजी से,भारत के लोगों के बीचलोकप्रिय हो रहे थे जो कि गाँधी परिवार को अच्छा नहीं लग रहा था भगत सिंह हम से आगे निकले और देश की जनता भगत सिंह को हाथों हाथ ले यह मैंने बहुत बार लिखा है भगत सिंह को फांसी नहीं होती अगर गांधी परिवार के लोग और अगर महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू चाहते तो भगत सिंह की फांसी रुक सकती थी परंतु जिस तरह अंग्रेजी शासक ने जो वक्तव्य दिए पूरा विश्व जानता है इस चीज को भगत सिंह को फांसी पर सकती थी मदन मोहन मालवीय जी ने भगत सिंह की फांसी रोकने हेत बहुत प्रयास किए हैं लेकिन गांधी परिवार की सहमत ना मिलने के कारण उन वीर सपूतों को फांसी पर लटका दिया गया क्योंकि गांधी परिवार नहीं चाहता था भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी वीर हमारे साथ खड़े हो क्योंकि देश की जनता भगत सिंह को तहे दिल से प्यार करती है और करती थी जिसका डर गांधी परिवार और सिने हम राष्ट्रपिता कहते हैं महात्मा गांधी को अगर यह चाहते तो भगत सिंह की फांसी रोक सकती थी बहुत बड़ा प्रश्न है क्यों उन्होंने उन्हें क्यों नहीं बचाया यह प्रश्न गांधी परिवार से पूछने का पूरे देश को हक है। यही चीज सुभाष चंद्र बोस पर भी हुई सुभाष चंद्र बोस को भी गांधी परिवार पसंद नहीं करता था उनकी मृत्यु का पता आज तक नहीं चल पाया और ना ही किसी दल ने आजादी के बाद सुभाष चंद्र बोस का पता करने की कोशिश की यह बहुत बड़ी विडंबना है इस देश की जो हंसते-हंसते प्राणों को देकर चले गए उनके साथ भी राजनीत हुई है। यह आज ही नहीं है यह पहले से धोखाधड़ी की राजनीति चलती आ रही है जिसको अब वर्तमान प्रधानमंत्री सुधारने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन 70 वर्षों तक जिसने इस देश को और रौद कर रख दिया ओ कभी नहीं चाहेंगे कि हमारे सामने कोई खड़ा हो क्योंकि वह इस देश के इकलौते वारिस बनने का ख्वाब देखते आए हैं और रहे भी है 70 वर्षों तक लेकिन अब भारत बदल चुका है अब उसको प्रतिद्वंदी मिल गया है भारतीय जनता पार्टी के नाम से अब जो अच्छा कार्य करेगा वही इस देश में राज करेगा धोखाधड़ी बेईमानी मौकापरस्त लोगों को जनता चुनाव में सबक सिखाएगी यह जनता सब जानती है।जब दो दो कौड़ी के आदमी देश के प्रधानमंत्री को गालियां देते हैं
उनकी कब्र खोदने के नारे लगा सकते हैं ,जलेबी खिलाने का लालच देकर गांव से महिलाओं को ट्रैक्टर में बिठाकर दिल्ली बार्डर पर मोदी को गालियां दिलवा सकते हैं,
तो हम अपने विचार रखने में क्यों हिचकें।देश मेरा भी है।
जिन के कारण और जिनको घोर कष्ट हो रहा है वो सब भी हमारे आत्मीयजन हैं।मेरा किसी राजनैतिक पार्टी से कोई लेना देना नहीं।
सरकारें आती जाती रहती हैं ।
एक महिने से सुन सुन कर कान पक गए, किसान,
किसान,
किसान,
देश का अन्नदाता है,
पालनहार है।
किसान खेती नहीं करेगा तो देश भूखा मर जायेगा।
अरे ऐसे तो जो भी जो व्यक्ति कार्य करता है उसकी अबश्यकता होती है, डॉक्टर डाक्टरी ना करे, मास्टर मास्टरी ना करे, टेलर कपड़े ना सिले, सिपाही रक्षा ना करे......... अनगिनत कार्य है ।
कोई मुझे ईमानदारी से बतायेगा कि यदि किसान खेती नहीं करेगा तो किसान का परिवार बचेगा?
उसके परिवार का लालन पालन हो जायेगा?
उसके बच्चों की फीस कपड़े दवाई सब कहां से आयेगा ? कपड़े कहाँ से लाएगा, अन्य आवश्यकता की वस्तुएँ कहाँ से लाएगा,
मानते हैं वो कड़ी मेहनत करके अन्न उगाता है तो क्या मुफ्त में बांटता है?
बदले में उसका मूल्य नहीं लेता क्या?
फिर वह दुनिया का पालनहार कैसे माना जाये?
दुनिया का हर व्यक्ति रोजगार करके चार पैसे कमा कर अपना परिवार पालता है।और प्रत्येक कार्य का अपनी जगह अपना महत्व है ..।
तो किसान का रोजगार है खेती करना। सच्चाई तो ये है उन्हे खेती के अलावा और कुछ आता ही नहीं,
और जिन्होंने कुछ सीख लिया कुछ अच्छा कमा लिया उन्होंने खेती करनी ही छोड़ दी।कोई आढत की दुकानदारी करता है,
तो कोई प्रोपर्टी का धन्धा करता है,
तो कोई हीरो होन्डा आदि की ऐजेन्सी लिये बैठा है,
तो कोई रोड़ी बदरपुर सीमेंट ही बेच रहा है।
और नहीं तो मुर्गा फार्म खोले बैठा है यानि सबसीडी के चक्कर में जोहड़ में मछली ही पाल रहा है।
उन्हें क्या किसान कहेंगे?
36 प्रकार की सबसिडी किसानों को मिल रही है,
6000 वार्षिक खाते में में आ रहे हैं,
माता पिता पैन्शन ले रहे हैं,
आये गये साल कर्जे माफ करा लेते हैं,
फिर कहते हैं मोदी तेरी कब्र खुदेगी।
किसी रिक्शा वाले की,
किसी ऑटो वाले की,
किसी नाई की,
किसी दर्जी की,
किसी लुहार की,
किसी साइकिल पेन्चर लगाने वाले की,
किसी रेहड़ी वाले की,
ऐसे न जाने कितने छोटे रोजगारों की कोई सबसिडी आई है आज तक?
किसी का कर्जा माफ हुआ है आज तक? क्या ये लोग इस देश के वासी नही हैं?
कल को ये भी आन्दोलन करके कहेंगे देश के पालनहार हम ही हैं।
रही बात MSP की कल हलवाई कहेंगे
सरकार हमारे समोसे की एम एस पी 50 रुपये निश्चित करो।
चाहे उसमें सड़े हुए आलु भरें।
हमारे सब बिकने चाहियें।
नहीं बिके तो सरकार खरीदे,
चाहे सूअरों को खिलाये।
हमें समोसे की कीमत मिलनी चाहिए ।परसों बिरयानी वाले कहेंगे एक प्लेट बिरयानी 90 रुपये एम एस पी रखो चाहे उसमें कुत्ते का मांस डालें या चूहों का सब बिकनी चाहिये।
जो नहीं बिके उसे खट्टर और दुष्यंत खरीदें और पैसे सीधे हमारे खाते में जमा हों।
ये सब तमाशा नहीं तो क्या हो रहा है।
दिल्ली में जो त्राहि त्राहि हो रही है,
ना दूध पहुंच रहा है,
ना सब्जी पहुंच रही है,
ना कर्मचारी समय पर पहुंच पा रहे हैं उनकी ये दशा बनाने का क्या अधिकार है इन तथाकथित किसानों का?
सत्य कड़ुवा होता है
पंजाब वाले घेराव करते अपने मन्त्रियों का
और
हरियाणा वाले अपने मन्त्रियों का।*
दिल्ली को घेर कर आम आदमी को क्यों परेशान किया जा रहा है।
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