यह त्यौहार माघ के कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाता है जिसे संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता इसे तिलकुटा चैथ भी कहते है। सकट चैथ व्रत संतान की लम्बी आयु के लिये किया जाता है। इस दिन संकट हरण गणपति गणेशजी का पूजन होता है। भगवान गणेशजी के साथ-साथ भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय, नंदी एवं चंद्रदेव की पूजा का विधान है। पूजा में दूर्वा, शमी पत्र, बेल पत्र, गुड़ और तिल के लडडू चढ़ाये जाते है। यह व्रत संतान के जीवन में विध्न बाधाओं को दूर करता है संकटों तथा दुःखों को दूर करने वाला और रिद्धि-सिद्धि देने वाला है। प्राणीमात्र की सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं भी इस व्रत के करने से पूरी हो जाती है। इस दिन ़िस्त्रयाँ निर्जल व्रत रखकर शाम का
फलाहार लेती है और दूसरे दिन सुबह सकट माता पर चढ़ाए गए पूरी-पकवानों को प्रसाद रूप में ग्रहण करती है। शाम को चन्द्रोदय के समय तिल, गुड़ आदि का अध्र्य चन्द्रमा को दिया जाता है। तिल को भूनकर गुड़ के साथ कूट लिया जाता है। तिलकुट का पहाड़ बनाया जाता है। कहीं-कहीं तिलकुट का बकरा भी बनाया जाता है। उसकी पूजा करके घर का कोई बच्चा तिलकुट बकरे की गर्दन काट देता है। फिर सबको उसका प्रसाद दिया जाता है। पूजा के बाद सब कथा सुनते है। 31 जनवरी को चन्द्रोदय रात 08ः27 पर होगा।
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ- 31 जनवरी को रात 8 बजकर 24 मिनट
चतुर्थी तिथि समाप्त- 1 फरवरी को शाम 6 बजकर 24 मिनट तक
ज्योतिषाचार्य-एस.एस.नागपाल, स्वास्तिक ज्योतिष केन्द्र, अलीगंज, लखनऊ
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