करवा चौथ पर सुहागिनों ने पूरा दिन निर्जला व्रत रखा
बांदा, के एस दुबे । करवा चौथ का व्रत पति और पत्नी के बीच अटूट स्नेह का प्रतीक है। सात जन्मों तक साथ निभाने और दुख-सुख में साथ चलने की कसम को पूरा करने के लिए यह व्रत सुहागिन अपने पति की लंबी आयु और उसकी सलामती के लिए करती है। बुधवार को करवाचैथ पर सुहागिनों ने पूरा दिन निर्जला व्रत रखकर सांझ ढले सज-धजकर पूजा की। चंद्रमा को अध्र्य देने के बाद अपने पति का चलनी से दीदार किया।
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करवा चौथ पर सज-धजकर पूजा करतीं सुहागिनें |
बुधवार को करवाचैथ पर पूरा दिन निर्जला व्रत रखने के बाद सुहागिनों ने शाम ढलते ही सोलह श्रंगार में सजधज कर पूजा अर्चना की और चंद्रमा को अध्र्य देकर चलनी की ओट से पति का दीदार किया। इसके बाद पति के हाथों व्रत का पारण किया। पतियों ने भी पत्नी की पसंद को ध्यान में रखते हुए उपहार सौंपा। कार्तिक मास की चतुर्थी के दिन सुहागिनें करवा चैथ का व्रत करती हैं। इस दिन पत्नी अपने पति की दीघार्यु के लिए मंगलकामना और स्वयं के अखंड सौभाग्यवती होने की कामना करती है। बुधवार को करवाचैथ के व्रत में सुहागन स्त्रियों ने सुबह से लेकर रात में चांद निकलने तक व्रत रखा। सारा दिन पूजा सामग्री और पकवान तैयार करने में निकल गया, लेकिन शाम को सूरज के डूब जाने के बाद बस इन महिलाओं को बस आसमान में थाल जैसे चंदा का इंतजार था। करीब सवा आठ बजे चंद्रदेव ने दर्शन दिए तो घरों की छत पर घंटा, घड़ियाल की गूंज शुरू हो गई। महिलाओं ने विधिविधान से चंद्रदेव का पूजन किया और जल से अर्घ्य देकर पति की आयु चांद की तरह लंबी होने की प्रार्थना की। फिर चलनी से चांद को निहारने के बाद पतिदेव के दर्शन किये और उनके हाथों से ही व्रत का समापन किया।
आसमान पर चांद को ढूंढती रहीं सुहागिनों की निगाहें
बांदा। करवाचैथ की सुबह से ही पूरा दिन निर्जला व्रत और दिन भर पकवान बनाने में व्यस्तता के बाद जब शाम ढली तो महिलाओं की निगाह आसमान की ओर टिक गई। हालांकि ज्योतिष गणना के अनुसार बुधवार की रात करीब आठ बजे चंद्रमा निकला। लेकिन महिलाएं शाम से ही चंद्रमा निकलने तक आसमान पर टकटकी लगाए रहीं और जैसे ही आसमान में चंद्रदेव के दर्शन हुए तो सोलह श्रंगार से सज धज कर महिलाएं छतों पर पूजा के लिए निकल पड़ी। पूजा अर्चना के बाद महिलाओं ने व्रत का समापन किया और फिर पति के हाथों उपहार पाकर गदगद हो गईं।
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