हमीरपुर, महेश अवस्थी । किशनू बाबू शिवहरे महाविद्यालय में विमर्श विविधा के अंतर्गत जरा याद करो कुर्बानी के तहत बुंदेलखंड की दूसरी वीरांगना झलकारी बाई की जयंती पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कालेज के प्राचार्य डॉ भवानीदीन ने कहा कि झलकारी बाई एक महान वीरांगना थी, वह देश के प्रति समर्पित थी, और उन्हे सत्तावन के समर की शेरनी कहा जा सकता है । झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर 1830 को सदोँवर सिह के घर हुआ था , झलकारी बाई की माता का नाम जमुना देवी था, इनका जन्म भोजला गांव में हुआ था और यह महारानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी ,यह शुरू से ही देश प्रेमी थी, इनके पिता ने इन्हें तलवार चलाना, घुड़सवारी करना और अन्य हथियारों का प्रशिक्षण दिया था ।
एक बार इन्होंने खेत में कुल्हाड़ी से तेंदुए को मार दिया था, इनकी वीरता को देखते हुए इनका विवाह रानी लक्ष्मीबाई के सेना का एक सैनिक पूरन कोली से कर दिया गया था, जिस समय18 57 का संग्राम हुआ महारानी लक्ष्मीबाई ने महिला सेना का गठन किया और उन्होंने अपनी दुर्गा सेना का झलकारी को सेनापति बना दिया, इनके पति ने आजादी के संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, रानी लक्ष्मीबाई का किला जब अंग्रेजों ने अपने कब्जे में कर लिया तब इन्होंने रानी को झांसी के किले से बाहर निकलने में मदद की थी और जनरल ह्यूज के शिविर मे
घोड़े में बैठकर पहुंच गयी थीं, इस तरह से अगर देखा जाए तो झलकारी बाई वास्तव में देश प्रेमी थी,उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है ,कालांतर में ऐसा माना जाता है कि 5 अप्रैल 1858 को यह भी वीरगति को प्राप्त हो गई। इस तरह से उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता है ,कार्यक्रम में अखिलेश सोनी, सुरेश सोनी, डॉ लालता प्रसाद नेहा यादव आरती गुप्ता प्रदीप यादव राकेश यादव,राजकिशोर पाल,देवेंद्र त्रिपाठी, गनेश और प्रत्यूष त्रिपाठी मौजूद रहे, संचालन डॉक्टर रमाकान्त ने किया।
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