तपोभूमि में आस्थावानों ने किया दीपदान
चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि। देवात्थानी एकादशी पर्व जिले में धूमधाम से मनाया गया। धर्मनगरी स्थित रामघाट में श्रद्धालुओं ने दीप जलाकर कामदगिरि की परिक्रमा की। हजारों दीपों की रोशनी से धर्मनगरी जगमगा उठी। महिलाओं ने व्रत रखकर शाम ढलते ही घरों में दीपक जलाया। भक्तों ने तुलसी महोत्सव में शोभायात्रा निकाली।
बुधवार को देवोत्थानी एकादशी व छोटी दीपावली पर्व पर घरों में लोगों ने दीप जलाये। महिलाओं ने व्रत रखकर विधिविधान से पूजन-अर्चन किया। सवेरे से गन्ना, सिंघाड़ा आदि सामग्री खरीद को बाजारों में खासी रौनक दिखी। धर्मनगरी परिक्षेत्र में दूरदराज से आये हजारों श्रद्धालुओं ने रामघाट में दीपदान कर भगवान कामदनाथ की परिक्रमा कर मन्नते मांगी। इसी क्रम में नगर पालिका ने कोरोना गाइड लाइन का पालन करते हुए स्काउट व एनसीसी कैडेटों के माध्यम से रामघाट में 11 हजार गोम दीपक जलवायें। इसके अलावा परिक्रमा मार्ग में दीपकों की कतार व आकर्षक रंगोली का भव्य नजारा रहा। दीपक की रोशनी से रामघाट जगमगा उठा। मान्यता है कि
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दीपदान करते आस्थावान |
पापमुक्त करने वाली एकादशी माना जाता है। वैसे तो सभी एकादशी पापमुक्त करने वाली होती है। आचार्य नवलेश दीक्षित ने बताया कि जितना पुण्य राजसूय यज्ञ करने से होता है उससे अधिक पुण्य देवउठनी एकादशी के दिन होता है। इसके चार माह पूर्व देवसैनी एकादशी मनाई जाती है। इसके लिए माना जाता है कि भगवान विष्णु समेत सभी देवता क्षीरसागर में जाकर सो जाते हैं। इसलिए इन दिनो पूजा-पाठ और दानपुण्य के कार्य किये जाते हैं। किसी तरह का शुभ कार्य जैसे शादी, मुंडन, नामकरण संस्कार नहीं किये जाते हैं। देवउठनी एकादशी को
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गन्ना खरीदते लोग। |
प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी को देवोत्थान एकादशी, देवउठनी, ग्यारस, प्रबोधनी एकादशी आदि नामों से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि श्रीहरि राजा बलि के राज्य से चार्तुमास का विश्राम पूरा कर वैकुण्ठ लौटे थे। बताया कि एकादशी के दूसरे दिन तड़के महिलायें गन्ने से सूपा बजाकर ईश्वर का आवाहन कर रोग, दरिद्रता को घर से बाहर करने की कामना करती है। इसी क्रम में तुलसी विवाह पर गाजे-बाजे के साथ भक्तों ने परिक्रमा मार्ग में शोभायात्रा निकाली।
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