चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि। चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्व विद्यालय कानपुर के कृषि वैज्ञानिक डा जितेन्द्र सिंह ने जिले के योगेश जैन के फार्म का भ्रमण किया। इस दौरान बताया गया कि प्रक्षेत्र मे समन्वित कृषि ’प्रणाली से खेती कर रहे हैं। देशी गायो की डेयरी भी है। कृषि वैज्ञानिक डा सिंह ने बताया कि नदी किनारे सीमित सिचाई वाले क्षेत्र मे जल संरक्षण के बाद नमी संरक्षण का प्रबन्धन अपनाना बहुत आवश्यक है। सही नमी प्रबन्धन न होने से बीज जमाव के साथ उत्पादन कम हो जाता हैं। नमी संरक्षण के लिए उथली जुताई एवं सरसो, चना ,मटर, मसूर मे निराई गुडाई बहुत ही लाभकारी हैं। सरसो मे 25-30 दिन पर एक निराई करे। साथ ही विरलीकरण यानी सरसो के पौधे जो
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फार्म का भ्रमण करते कृषि वैज्ञानिक। |
घने हो उन्हे उखाड़ कर उचित दूरी पर जरुर करे। रासायनिक उर्वरको से अधिक ’गोबर’ की पकी खाद डालें। कहा कि पराली जलाना हानिकारक’ हैं। बुन्देलखंड मे धान-गेहूँ का बढता क्षेत्र टिकाऊ खेती के लिये चिन्ता का विषय हैं। पानी के संसाधन बढते ही तिलहन, दलहन का क्षेत्र धान-गेहूँ मे बदल रहा हैं। जबकि गेहूँ की तैयारी से कम मेहनत मे दलहन, तिलहन का उत्पादन लाभकारी होता हैं। साथ ही मृदा स्वास्थ्य ठीक रहता हैं। नाडेप कम्पोस्ट’जो एक वर्ष मे 3 एकड़ के लिये खाद बनाने की घर की फैक्ट्री हैं। किसान इसे अपनाये और उर्वरको का उपयोग कम करें। बताया कि जनपद की कृषि के अनुसार तकनीकी जानना होगा। तकनीकी प्रबन्धन का कोई विकल्प नही हैं। सभी तकनीकी जानने का प्रयास ेेेहोना चाहिए। इस मौके पर विकास प्राधिकरण के शैलेंन्द्र सिंह मौजूद रहे।
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