हमीरपुर, महेश अवस्थी । किशनू बाबू शिवहरे महाविद्यालय में विमर्श विविधा के अंतर्गत जिनका देश आज भी ऋणी है ,के तहत कूका आंदोलन के सूत्रधार सतगुरु राम सिंह कूका की पुण्यतिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए प्राचार्य डॉ भवानी दीन ने कहा कि रामसिंह कूका वास्तव में आजादी के आंदोलन के प्रणेता थे, राम सिंह कूका का जन्म 3 फरवरी 1816 को लुधियाना पंजाब के
भैणी गांव में हुआ था, इनके पिता का नाम जस्सा सिंह और मां का नाम सदाकौर था,ये बीस वर्ष की आयु मे महाराज रणजीतसिंह की सेना मे भर्ती हो गये थे,ये शबद कीर्तन और भगवद भजन के कारण प्रसिद्ध हो गये और इनके बहुत से शिष्य हो गये, ये नामधारी नाम से विख्यात हो गये, इसके बाद इन्होंने ललकार या कूक दी, जिसके कारण ये कूका कहलाये, रामसिंह की यह कूक बहुत प्रसिद्ध थी-आ गया है कर्म युग,कुछ कर्म करना सीख लो।मारने का नाम मत लो,पहले मरना सीख लो।देश को स्वतंत्र करना है उन्होंने नामधारी पंथ के नाम से जाना गया,सदगुरु रामसिंह को सामाजिक सुधार के साथ साथ गांधी जी के स्वदेशी, बहिष्कार और असहयोग आन्दोलन का अग्रदूत माना जाता था। 1872 में मकर संक्रांति के मेले में मुसलमानों ने रामसिंह कूका के शिष्य को
पकड़कर बहुत मारा, उसका अपमान किया, इस पर रामसि्ह के शिष्यों ने मालेरकोटला नामक गांव में आक्रमण कर दिया ,उधर से पुलिस और सेना आ गई ,भीषण संघर्ष हुआ, जिसमें 7 कूका शहीद हो गए, 29 घायल हो गए दूसरे पक्ष के 8 लोग मरे ,4 से अधिक घायल हुए और 9 को साधारण चोटें आयी ,साथ ही सतगुरु राम सिंह कूका को पकड़कर मांडले जेल में बंद कर दिया गया, इस तरह से यह कहा जा सकता है कि सदगुरु महान समाज सुधारक होने के साथ-साथ सतगुरु कूका बहुत बड़े स्वतंत्रता की आजादी के संघर्षी सूर थे, कालांतर में सतगुरु राम सिंह कूका का ढाका में 29 नवंबर 1885 को निधन हो गया ।डॉ श्याम नारायण, अखिलेश सोनी आरती गुप्ता, नेहा यादव सुरेश सोनी, प्रदीप यादव प्रत्यूष त्रिपाठी, प्रशांत सक्सैना,राकेश यादव , राम चंद साहू और गंगादीन शामिल रहे ,संचालन डॉ रमाकांत पाल ने किया।
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