देवेश प्रताप सिंह राठौर
(वरिष्ठ पत्रकार)
........ बिहार का चुनाव धीरे-धीरे विधानसभा का निकट आता जा रहा है। जाति के आधार पर बिहार का चुनाव निर्भर करता है पासवान की पार्टी रामविलास पासवान के निधन के बाद उस पार्टी के मुखिया चिराग पासवान रामविलास पासवान के पुत्र हैं चिराग पासवान के जो शब्द हैं वह एक गठबंधन में उनकी कहीं ना कहीं एक मंशा साफ दिखाई देती है। चिराग पासवान मुख्यमंत्री के रूप में अपने को पेश करने का जो माहौल तैयार कर रहे हैं और इतनी जल्दी मुख्यमंत्री की सोच बनकर जो कार्य कर रहे हैं वह ठीक नहीं है उन्हें धैर्य रखकर अपने पिता के सिद्धांतों पर चलते हुए कार्य करें नहीं रामविलास पासवान के भाई पशुपतिनाथ पासवान ने चिराग पासवान के वक्तव्य को गलत बताया वहीं पर बीजेपी ने की पत्रकारिता मीटिंग बुलाकर स्पष्ट तौर पर कहा यहां पर गठबंधन हमारी जिन पार्टियों से है ना कोई यह A है ना कोई B है ना कोई है C और ना D है ।ऐसी हम लोगों की धारणा नहीं है हमारा गठबंधन मजबूत है और हम दोबारा सरकार बिहार में बनाएंगे यह बात सुमित पात्रा भाजपा के प्रवक्ता द्वारा कही गई है।एससी-एसटी समुदाय के किसी व्यक्ति की हत्या होने पर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की घोषणा से बिहार का चुनावी मौसम गरमा गया है. मामला वोट बैंक से जुड़ा होने के कारण विपक्ष भी हमलावर हुआ है.
दावे-प्रतिदावे जो भी किए जाएं, इतना तो साफ है कि अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी राजनीति अन्य मुद्दों की बजाय जाति के इर्द-गिर्द ही घूमती रहेगी. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1995 के तहत गठित राज्यस्तरीय सतर्कता और मॉनीटरिंग कमिटी की बैठक के दौरान कई अहम फैसले लिए गए. चुनाव के ऐन मौके पर अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) के पक्ष में एक निर्णय लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातीय आंकड़ों पर आधारित बिहार की राजनीति को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश की है. उन्होंने एससी-एसटी परिवार के किसी सदस्य की हत्या होने पर पीड़ित परिवार के एक व्यक्ति को नौकरी देने के प्रावधान के लिए तत्काल नियम बनाने का निर्देश दिया. इसके साथ ही इस वर्ग से संबंधित लंबित सभी कांडों का निपटारा 20 सितंबर तक करने, जो अधिकारी इन मामलों के निष्पादन में कोताही बरत रहे उनके खिलाफ कार्रवाई करने तथा इनके लिए चलाई जा रहीं योजनाओं का लाभ शीघ्र-अतिशीघ्र दिलाने तथा इसके अतिरिक्त अन्य योजनाओं व संभावनाओं पर भी विचार करने का निर्देश भी समीक्षा बैठक के दौरान जारी किया गया. मुख्यमंत्री का यह भी कहना था, "उनके लिए जो कुछ करने की जरूरत होगी, वह सब किया जाएगा. इन लोगों के उत्थान से ही समाज का उत्थान हो सकेगा."
राजनीति के जानकार इसे नीतीश का मास्टर स्ट्रोक की संज्ञा दे रहे हैं. मुख्यमंत्री ने इन फैसलों के माध्यम से एससी-एसटी वर्ग को यह बताने की कोशिश की है कि राज्य सरकार उनके हितों की रक्षा के लिए दृढ़संकल्प है. ये निर्देश उस वोट बैंक को ध्यान में रखकर जारी किए गए जिनका साथ पाने को हर पार्टी लालायित रहती है. आखिर लोकतंत्र में आंकड़ों का बड़ा महत्व तो है ही. 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में 16 फीसद आबादी दलितों की है. इनमें करीब पांच से छह फीसद मुसहर, चार से पांच प्रतिशत रविदास, तीन से चार प्रतिशत पासवान और शेष गोड़, धोबी, पासी व अन्य जातियों के लोग हैं. जाहिर है, 2020 में इन सबों की जनसंख्या में खासी वृद्धि हुई होगी जिनसे इनकी भागीदारी में जर्बदस्त इजाफा ही हुआ होगा. नीतीश ने इससे पहले दलितों में महादलित नामक श्रेणी बनाकर भी वोट बैंक का पुख्ता इंतजाम करने की कोशिश की थी. 2005 में 21 जातियों को महादलित घोषित कर दिया गया था हालांकि 2018 में पासवान को भी महादलित घोषित कर दिया गया. बिहार में अब दलित के बजाय महादलित ही रह गए हैं. पुराने आंकड़ों के अनुसार ही सही, इस 16 फीसद वोट को सुनिश्चित कर राज्य में सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधनभाजपा-जदयू-लोजपा जीत की राह आसान करना चाहता है.
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