भगवान विश्वकर्मा देवी-देवताओं के शिल्पकार थे। सभी अस्त्र-शस्त्र व वाहनों का निर्माण विश्वकर्मा जी ने किया था। भगवान विश्वकर्मा ने द्वारिका इन्द्रपुरी, पुष्पक विमान, सभी देवी- देवताओं भवन और दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुओं का निर्माण किया है। कर्ण के कुण्डल, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशूल यमराज का कालदण्ड का निर्माण किया था। अतः इस दिन सभी फैक्ट्ररी, दुकानों व निर्माण स्थलोें पर जहाँ औजारों व मशीनों का उपयोग होता है सभी लोग भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते है।
हिन्दू धर्म शास्त्रो के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र धर्म के सातवे संतान जिनका नाम वास्तु था। विश्वकर्मा जी वास्तु के पुत्र थे जो अपने माता-पिता की भांति महान शिल्पकार हुए जिन्होंने इस सृस्टि में अनेको प्रकार के निर्माण इन्ही के द्वारा हुआ। देवताओ का स्वर्ग हो या लंका के रावण की सोने की लंका हो या भगवान कृष्ण जी की द्वारिका और पांडवो की राजधानी हस्तिनापुर इन सभी राजधानियों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा द्वारा की गयी है। जो की वास्तु कला की अद्भुत मिशाल है। विश्वकर्मा जी को औजारों का देवता भी कहा जाता है। 17 सितंबर को सूर्य सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करेगा। इस राशि परिवर्तन को कन्या संक्रांति कहा जाता है।संक्रांति पर दान पवित्र जलाशयों नदियों में स्नान पितरों का पूजन शुभ माना जाता है
विश्कर्मा पूजा विधि
भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने के लिए सुबह स्वच्छ कपड़े पहनें और भगवान विश्वकर्मा की पूजा करें. विश्वकर्मा पूजा में अक्षत, हल्दी, फूल, पान, लौंग, सुपारी, मिठाई, फल, धूप, दीप और रक्षासूत्र से पूजा करें. कलश को हल्दी और चावल के साथ रक्षासूत्र चढ़ाएं जिन चीजों की पूजा करना चाहते हैं उन पर हल्दी, और चावल लगाएं. इसके बाद पूजा करते वक्त मंत्रों का उच्चारण करें. जब पूजा के उपरांत प्रसाद का वितरण करें
.-ज्योतिषाचार्य- एस.एस.नागपाल, स्वास्तिक ज्योतिष केन्द्र, अलीगंज, लखनऊ।
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